वांछित मन्त्र चुनें

सु॒नोता॒ मधु॑मत्तमं॒ सोम॒मिन्द्रा॑य व॒ज्रिणे॑ । चारुं॒ शर्धा॑य मत्स॒रम् ॥

अंग्रेज़ी लिप्यंतरण

sunotā madhumattamaṁ somam indrāya vajriṇe | cāruṁ śardhāya matsaram ||

पद पाठ

सु॒नोत॑ । मधु॑मत्ऽतमम् । सोम॑म् । इन्द्रा॑य । व॒ज्रिणे॑ । चारु॑म् । शर्धा॑य । म॒त्स॒रम् ॥ ९.३०.६

ऋग्वेद » मण्डल:9» सूक्त:30» मन्त्र:6 | अष्टक:6» अध्याय:8» वर्ग:20» मन्त्र:6 | मण्डल:9» अनुवाक:2» मन्त्र:6


बार पढ़ा गया

आर्यमुनि

पदार्थान्वयभाषाः - (वज्रिणे इन्द्राय) वज्रवाले कर्मयोगी के लिये (सोमम् सुनोत) सोम रस उत्पन्न करो, जो रस (चारुम्) सुन्दर है (शर्धाय मत्सरम्) बल के लिये जो हर्ष उत्पन्न करनेवाला है (मधुमत्तमम्) जो अत्यन्त मीठा है ॥६॥
भावार्थभाषाः - परमात्मा उपदेश करता है कि हे विद्वान् पुरुषो ! तुम उत्तमोत्तम ओषधियों से सौम्य स्वभाव बनानेवाले रसों को उत्पन्न करो, जिन रसों का पान करके कर्मयोगी पुरुष अपने कर्तव्यों में दृढ़ रहें और जिन रसों से हर्ष को प्राप्त होकर संसार में सर्वोपरि बल को उत्पन्न करें ॥६॥ यह तीसवाँ सूक्त और बीसवाँ वर्ग समाप्त हुआ ॥
बार पढ़ा गया

आर्यमुनि

पदार्थान्वयभाषाः - (वज्रिणे इन्द्राय) वज्रोपेताय कर्मयोगिने (सोमम् सुनोत) सोमरसं समुत्पादय यो रसः (चारुम्) सुन्दरः (शर्धाय मत्सरम्) बलाय हर्षप्रदः (मधुमत्तमम्) स्वादुरस्ति ॥६॥ इति त्रिंशत्तमं सूक्तं विंशो वर्गश्च समाप्तः ॥